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GHAZAL

ख़ुद अपने ही हाथों का लिखा काट रहा हूँ

ख़ुद अपने ही हाथों का लिखा काट रहा हूँ

ले देख ले दुनिया मैं पता काट रहा हूँ

ये बात मुझे देर से मा'लूम हुई है

ज़िंदाँ है ये दुनिया मैं सज़ा काट रहा हूँ

दुनिया मिरे सज्दे को इबादत न समझना

पेशानी पे क़िस्मत का लिखा काट रहा हूँ

अब आप की मर्ज़ी है इसे जो भी समझिए

लेकिन मैं इशारे से हवा काट रहा हूँ

तू ने जो सज़ा दी थी जवानी के दिनों में

मैं उम्र की चौखट पे खड़ा काट रहा हूँ

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ख़ुद अपने ही हाथों का लिखा काट रहा हूँ — Munawwar Rana • ShayariPage