Shayari Page
GHAZAL

दरिया-दिली से अब्र-ए-करम भी नहीं मिला

दरिया-दिली से अब्र-ए-करम भी नहीं मिला

लेकिन मुझे नसीब से कम भी नहीं मिला

फिर उँगलियों को ख़ूँ में डुबोना पड़ा हमें

जब हम को माँगने पे क़लम भी नहीं मिला

सच बोलने की राह में तन्हा हमीं मिले

इस रास्ते में शैख़-ए-हरम भी नहीं मिला

मैं ने तो सारी उम्र निभाई है दोस्ती

वो मुझ से खा के मेरी क़सम भी नहीं मिला

दिल को ख़ुशी भी हद से ज़ियादा नहीं मिली

कासे के ए'तिबार से ग़म भी नहीं मिला

Comments

Loading comments…
दरिया-दिली से अब्र-ए-करम भी नहीं मिला — Munawwar Rana • ShayariPage