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GHAZAL

ऐसा लगता है कि कर देगा अब आज़ाद मुझे

ऐसा लगता है कि कर देगा अब आज़ाद मुझे

मेरी मर्ज़ी से उड़ाने लगा सय्याद मुझे

मैं हूँ सरहद पे बने एक मकाँ की सूरत

कब तलक देखिए रखता है वो आबाद मुझे

एक क़िस्से की तरह वो तो मुझे भूल गया

इक कहानी की तरह वो है मगर याद मुझे

कम से कम ये तो बता दे कि किधर जाएगी

कर के ऐ ख़ाना-ख़राबी मिरी बर्बाद मुझे

मैं समझ जाता हूँ इस में कोई कमज़ोरी है

मेरे जिस शे'र पे मिलती है बहुत दाद मुझे

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