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ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता

ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता

अगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता

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ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता — Mirza Ghalib • ShayariPage