SHER•10/23/2020ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होताBy Mirza GhalibLikeShareReportHindiEnglishये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता अगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता