क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हाँ Mirza Ghalib@mirza-ghalibक़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हाँ रंग लावेगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन