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गो मैं रहा रहीन-ए-सितम-हा-ए-रोज़गार

गो मैं रहा रहीन-ए-सितम-हा-ए-रोज़गार

लेकिन तिरे ख़याल से ग़ाफ़िल नहीं रहा

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गो मैं रहा रहीन-ए-सितम-हा-ए-रोज़गार — Mirza Ghalib • ShayariPage