Shayari Page
GHAZAL

मज़े जहान के अपनी नज़र में ख़ाक नहीं

मज़े जहान के अपनी नज़र में ख़ाक नहीं

सिवाए ख़ून-ए-जिगर सो जिगर में ख़ाक नहीं

मगर ग़ुबार हुए पर हवा उड़ा ले जाए

वगरना ताब ओ तवाँ बाल-ओ-पर में ख़ाक नहीं

ये किस बहिश्त-शमाइल की आमद आमद है

कि ग़ैर-ए-जल्वा-ए-गुल रहगुज़र में ख़ाक नहीं

भला उसे न सही कुछ मुझी को रहम आता

असर मिरे नफ़स-ए-बे-असर में ख़ाक नहीं

ख़याल-ए-जल्वा-ए-गुल से ख़राब हैं मय-कश

शराब-ख़ाने के दीवार-ओ-दर में ख़ाक नहीं

हुआ हूँ इश्क़ की ग़ारत-गरी से शर्मिंदा

सिवाए हसरत-ए-तामीर घर में ख़ाक नहीं

हमारे शेर हैं अब सिर्फ़ दिल-लगी के 'असद'

खुला कि फ़ाएदा अर्ज़-ए-हुनर में ख़ाक नहीं

Comments

Loading comments…