GHAZAL•
क्यूँकर उस बुत से रखूँ जान अज़ीज़
By Mirza Ghalib
क्यूँकर उस बुत से रखूँ जान अज़ीज़
क्या नहीं है मुझे ईमान अज़ीज़
दिल से निकला पे न निकला दिल से
है तिरे तीर का पैकान अज़ीज़
ताब लाए ही बनेगी 'ग़ालिब'
वाक़िआ सख़्त है और जान अज़ीज़
क्यूँकर उस बुत से रखूँ जान अज़ीज़
क्या नहीं है मुझे ईमान अज़ीज़
दिल से निकला पे न निकला दिल से
है तिरे तीर का पैकान अज़ीज़
ताब लाए ही बनेगी 'ग़ालिब'
वाक़िआ सख़्त है और जान अज़ीज़