Shayari Page
GHAZAL

क्यूँकर उस बुत से रखूँ जान अज़ीज़

क्यूँकर उस बुत से रखूँ जान अज़ीज़

क्या नहीं है मुझे ईमान अज़ीज़

दिल से निकला पे न निकला दिल से

है तिरे तीर का पैकान अज़ीज़

ताब लाए ही बनेगी 'ग़ालिब'

वाक़िआ सख़्त है और जान अज़ीज़

Comments

Loading comments…