Shayari Page
GHAZAL

ख़मोशियों में तमाशा अदा निकलती है

ख़मोशियों में तमाशा अदा निकलती है

निगाह दिल से तिरे सुर्मा-सा निकलती है

फ़शार-ए-तंगी-ए-ख़ल्वत से बनती है शबनम

सबा जो ग़ुंचे के पर्दे में जा निकलती है

न पूछ सीना-ए-आशिक़ से आब-ए-तेग़-ए-निगाह

कि ज़ख्म-ए-रौज़न-ए-दर से हवा निकलती है

ब-रंग-ए-शीशा हूँ यक-गोश-ए-दिल-ए-ख़ाली

कभी परी मिरी ख़ल्वत में आ निकलती है

Comments

Loading comments…