कब वो सुनता है कहानी मेरी

कब वो सुनता है कहानी मेरी

और फिर वो भी ज़बानी मेरी


ख़लिश-ए-ग़म्ज़ा-ए-ख़ूँ-रेज़ न पूछ

देख ख़ूँनाबा-फ़िशानी मेरी


क्या बयाँ कर के मिरा रोएँगे यार

मगर आशुफ़्ता-बयानी मेरी


हूँ ज़-ख़ुद रफ़्ता-ए-बैदा-ए-ख़याल

भूल जाना है निशानी मेरी


मुतक़ाबिल है मुक़ाबिल मेरा

रुक गया देख रवानी मेरी


क़द्र-ए-संग-ए-सर-ए-रह रखता हूँ

सख़्त अर्ज़ां है गिरानी मेरी


गर्द-बाद-ए-रह-ए-बेताबी हूँ

सरसर-ए-शौक़ है बानी मेरी


दहन उस का जो न मालूम हुआ

खुल गई हेच मदानी मेरी


कर दिया ज़ोफ़ ने आजिज़ 'ग़ालिब'

नंग-ए-पीरी है जवानी मेरी