जुज़ क़ैस और कोई न आया ब-रू-ए-कार

जुज़ क़ैस और कोई न आया ब-रू-ए-कार

सहरा मगर ब-तंगी-ए-चश्म-ए-हसूद था


आशुफ़्तगी ने नक़्श-ए-सुवैदा किया दुरुस्त

ज़ाहिर हुआ कि दाग़ का सरमाया दूद था


था ख़्वाब में ख़याल को तुझ से मुआ'मला

जब आँख खुल गई न ज़ियाँ था न सूद था


लेता हूँ मकतब-ए-ग़म-ए-दिल में सबक़ हनूज़

लेकिन यही कि रफ़्त गया और बूद था


ढाँपा कफ़न ने दाग़-ए-उयूब-ए-बरहनगी

मैं वर्ना हर लिबास में नंग-ए-वजूद था


तेशे बग़ैर मर न सका कोहकन 'असद'

सरगश्ता-ए-ख़ुमार-ए-रुसूम-ओ-क़ुयूद था


आलम जहाँ ब-अर्ज़-ए-बिसात-ए-वजूद था

जूँ सुब्ह चाक-ए-जेब मुझे तार-ओ-पूद था


बाज़ी-ख़ुर-ए-फ़रेब है अहल-ए-नज़र का ज़ौक़

हंगामा गर्म-ए-हैरत-ए-बूद-ओ-नबूद था


आलम तिलिस्म-ए-शहर-ए-ख़मोशी है सर-बसर

या मैं ग़रीब-ए-किश्वर-ए-गुफ़्त-ओ-शुनूद था


तंगी रफ़ीक़-ए-रह थी अदम या वजूद था

मेरा सफ़र ब-ताला-ए-चश्म-ए-हसूद था


तू यक-जहाँ क़माश-ए-हवस जम्अ' कर कि मैं

हैरत-मता-ए-आलम-ए-नुक़्सान-ओ-सूद था


गर्दिश-मुहीत-ए-ज़ुल्म रहा जिस क़दर फ़लक

मैं पाएमाल-ए-ग़म्ज़ा-ए-चश्म-ए-कबूद था


पूछा था गरचे यार ने अहवाल-ए-दिल मगर

किस को दिमाग़-ए-मिन्नत-ए-गुफ़्त-ओ-शुनूद था


ख़ुर शबनम-आश्ना न हुआ वर्ना मैं 'असद'

सर-ता-क़दम गुज़ारिश-ए-ज़ौक़-ए-सुजूद था