जहाँ तेरा नक़्श-ए-क़दम देखते हैं

जहाँ तेरा नक़्श-ए-क़दम देखते हैं

ख़याबाँ ख़याबाँ इरम देखते हैं


दिल-आशुफ़्तगाँ ख़ाल-ए-कुंज-ए-दहन के

सुवैदा में सैर-ए-अदम देखते हैं


तिरे सर्व-क़ामत से इक क़द्द-ए-आदम

क़यामत के फ़ित्ने को कम देखते हैं


तमाशा कि ऐ महव-ए-आईना-दारी

तुझे किस तमन्ना से हम देखते हैं


सुराग़-ए-तफ़-ए-नाला ले दाग़-ए-दिल से

कि शब-रौ का नक़्श-ए-क़दम देखते हैं


बना कर फ़क़ीरों का हम भेस 'ग़ालिब'

तमाशा-ए-अहल-ए-करम देखते हैं


किसू को ज़-ख़ुद रस्ता कम देखते हैं

कि आहू को पाबंद-ए-रम देखते हैं


ख़त-ए-लख़्त-ए-दिल यक-क़लम देखते हैं

मिज़ा को जवाहर रक़म देखते हैं