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GHAZAL

इश्क़ तासीर से नौमेद नहीं

इश्क़ तासीर से नौमेद नहीं

जाँ-सिपारी शजर-ए-बेद नहीं

सल्तनत दस्त-ब-दस्त आई है

जाम-ए-मय ख़ातम-ए-जमशेद नहीं

है तजल्ली तिरी सामान-ए-वजूद

ज़र्रा बे-परतव-ए-ख़ुर्शेद नहीं

राज़-ए-माशूक़ न रुस्वा हो जाए

वर्ना मर जाने में कुछ भेद नहीं

गर्दिश-ए-रंग-ए-तरब से डर है

ग़म-ए-महरूमी-ए-जावेद नहीं

कहते हैं जीते हैं उम्मेद पे लोग

हम को जीने की भी उम्मेद नहीं

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