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GHAZAL

हम रश्क को अपने भी गवारा नहीं करते

हम रश्क को अपने भी गवारा नहीं करते

मरते हैं वले उन की तमन्ना नहीं करते

दर-पर्दा उन्हें ग़ैर से है रब्त-ए-निहानी

ज़ाहिर का ये पर्दा है कि पर्दा नहीं करते

ये बाइस-ए-नौमीदी-ए-अर्बाब-ए-हवस है

'ग़ालिब' को बुरा कहते हैं अच्छा नहीं करते

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हम रश्क को अपने भी गवारा नहीं करते — Mirza Ghalib • ShayariPage