धमकी में मर गया जो न बाब-ए-नबर्द था

धमकी में मर गया जो न बाब-ए-नबर्द था

इश्क़-ए-नबर्द-पेशा तलबगार-ए-मर्द था


था ज़िंदगी में मर्ग का खटका लगा हुआ

उड़ने से पेश-तर भी मिरा रंग ज़र्द था


तालीफ़ नुस्ख़ा-हा-ए-वफ़ा कर रहा था मैं

मजमुआ-ए-ख़याल अभी फ़र्द फ़र्द था


दिल ता जिगर कि साहिल-ए-दरिया-ए-ख़ूँ है अब

इस रहगुज़र में जल्वा-ए-गुल आगे गर्द था


जाती है कोई कश्मकश अंदोह-ए-इश्क़ की

दिल भी अगर गया तो वही दिल का दर्द था


अहबाब चारासाज़ी-ए-वहशत न कर सके

ज़िंदाँ में भी ख़याल बयाबाँ-नवर्द था


ये लाश-ए-बे-कफ़न 'असद'-ए-ख़स्ता-जाँ की है

हक़ मग़्फ़िरत करे अजब आज़ाद मर्द था