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GHAZAL

ग़म की दौलत मुफ़्त लुटा दूँ बिल्कुल नहीं

ग़म की दौलत मुफ़्त लुटा दूँ बिल्कुल नहीं

अश्कों में ये दर्द बहा दूँ बिल्कुल नहीं

तूने तो औक़ात दिखा दी है अपनी

मैं अपना मेयार गिरा दूँ बिल्कुल नहीं

एक नजूमी सबको ख़्वाब दिखाता है

मैं भी अपना हाथ दिखा दूँ बिल्कुल नहीं

मेरे अंदर इक ख़ामोशी चीखती है

तो क्या मैं भी शोर मचा दूँ बिल्कुल नहीं

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