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GHAZAL

चंद गज़ की शहरियत किस काम की

चंद गज़ की शहरियत किस काम की

उड़ना आता है तो छत किस काम की

जब तुम्हें चेहरे बदलने का है शौक़

फिर तुम्हारी असलियत किस काम की

पूछने वाला नहीं कोई मिजाज़

इस क़दर भी ख़ैरियत किस काम की

हम भी कपड़ों को अगर तरजीह दें

फिर हमारी शख़्सियत किस काम की

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चंद गज़ की शहरियत किस काम की — Mehshar Afridi • ShayariPage