GHAZAL•
चंद गज़ की शहरियत किस काम की
चंद गज़ की शहरियत किस काम की
उड़ना आता है तो छत किस काम की
जब तुम्हें चेहरे बदलने का है शौक़
फिर तुम्हारी असलियत किस काम की
पूछने वाला नहीं कोई मिजाज़
इस क़दर भी ख़ैरियत किस काम की
हम भी कपड़ों को अगर तरजीह दें
फिर हमारी शख़्सियत किस काम की