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सुतून-ए-दार पे रखते चलो सरों के चराग़

सुतून-ए-दार पे रखते चलो सरों के चराग़

जहाँ तलक ये सितम की सियाह रात चले

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सुतून-ए-दार पे रखते चलो सरों के चराग़ — Majrooh Sultanpuri • ShayariPage