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सुनते हैं कि काँटे से गुल तक हैं राह में लाखों वीराने

सुनते हैं कि काँटे से गुल तक हैं राह में लाखों वीराने

कहता है मगर ये अज़्म-ए-जुनूँ सहरा से गुलिस्ताँ दूर नहीं

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