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शब-ए-इंतिज़ार की कश्मकश में न पूछ कैसे सहर हुई

शब-ए-इंतिज़ार की कश्मकश में न पूछ कैसे सहर हुई

कभी इक चराग़ जला दिया कभी इक चराग़ बुझा दिया

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शब-ए-इंतिज़ार की कश्मकश में न पूछ कैसे सहर हुई — Majrooh Sultanpuri • ShayariPage