जैसे हर ज़ेहन को ज़ंजीर से डर लगता है

जैसे हर ज़ेहन को ज़ंजीर से डर लगता है

पीर-ओ-मुर्शद मुझे हर पीर से डर लगता है


मक़्तब-ए-फ़िक्र की बोहतात जहाँ होती है

तर्जुमा ठीक है तफ़सीर से डर लगता है


जिसमें तक़दीर बदलने की सहूलत न मिले

ऐसी लिक्खी हुई तक़दीर से डर लगता है


जिससे चुप चाप ज़मीरों को सुलाया जाए

ऐसे कम-ज़र्फ़ की तक़दीर से डर लगता है