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GHAZAL

अश्क-ए-नादाँ से कहो बाद में पछताएँगे

अश्क-ए-नादाँ से कहो बाद में पछताएँगे

आप गिरकर मेरी आँखों से किधर जाएँगे

अपने लफ़्ज़ों को तकल्लुम से गिराकर जाना

अपने लहजे की थकावट में बिखर जाएँगे

इक तेरा घर था मेरी हद-ए-मुसाफ़ित लेकिन

अब ये सोचा है कि हम हद से गुज़र जाएँगे

अपने अफ़्कार जला डालेंगे काग़ज़ काग़ज़

सोच मर जाएगी तो हम आप भी मर जाएँगे

इससे पहले कि जुदाई की ख़बर तुमसे मिले

हमने सोचा है कि हम तुमसे बिछड़ जाएँगे

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अश्क-ए-नादाँ से कहो बाद में पछताएँगे — Khalil Ur Rehman Qamar • ShayariPage