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एक ज़ख़्म ऐसा न खाया कि बहार आ जाती

एक ज़ख़्म ऐसा न खाया कि बहार आ जाती

दार तक ले के गया शौक़-ए-शहादत मुझ को

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एक ज़ख़्म ऐसा न खाया कि बहार आ जाती — Kaifi Azmi • ShayariPage