Shayari Page
GHAZAL

वो भी सराहने लगे अर्बाब-ए-फ़न के बा'द

वो भी सराहने लगे अर्बाब-ए-फ़न के बा'द

दाद-ए-सुख़न मिली मुझे तर्क-ए-सुख़न के बा'द

दीवाना-वार चाँद से आगे निकल गए

ठहरा न दिल कहीं भी तिरी अंजुमन के बा'द

होंटों को सी के देखिए पछ्ताइएगा आप

हंगामे जाग उठते हैं अक्सर घुटन के बा'द

ग़ुर्बत की ठंडी छाँव में याद आई उस की धूप

क़द्र-ए-वतन हुई हमें तर्क-ए-वतन के बा'द

एलान-ए-हक़ में ख़तरा-ए-दार-ओ-रसन तो है

लेकिन सवाल ये है कि दार-ओ-रसन के बा'द

इंसाँ की ख़्वाहिशों की कोई इंतिहा नहीं

दो गज़ ज़मीं भी चाहिए दो गज़ कफ़न के बा'द

Comments

Loading comments…