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GHAZAL

तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो

तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो

क्या ग़म है जिस को छुपा रहे हो

आँखों में नमी हँसी लबों पर

क्या हाल है क्या दिखा रहे हो

बन जाएँगे ज़हर पीते पीते

ये अश्क जो पीते जा रहे हो

जिन ज़ख़्मों को वक़्त भर चला है

तुम क्यूँ उन्हें छेड़े जा रहे हो

रेखाओं का खेल है मुक़द्दर

रेखाओं से मात खा रहे हो

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