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GHAZAL

सुना करो मिरी जाँ इन से उन से अफ़्साने

सुना करो मिरी जाँ इन से उन से अफ़्साने

सब अजनबी हैं यहाँ कौन किस को पहचाने

यहाँ से जल्द गुज़र जाओ क़ाफ़िले वालो

हैं मेरी प्यास के फूँके हुए ये वीराने

मिरे जुनून-ए-परस्तिश से तंग आ गए लोग

सुना है बंद किए जा रहे हैं बुत-ख़ाने

जहाँ से पिछले पहर कोई तिश्ना-काम उठा

वहीं पे तोड़े हैं यारों ने आज पैमाने

बहार आए तो मेरा सलाम कह देना

मुझे तो आज तलब कर लिया है सहरा ने

हुआ है हुक्म कि 'कैफ़ी' को संगसार करो

मसीह बैठे हैं छुप के कहाँ ख़ुदा जाने

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सुना करो मिरी जाँ इन से उन से अफ़्साने — Kaifi Azmi • ShayariPage