GHAZAL•
पत्थर के ख़ुदा वहाँ भी पाए
By Kaifi Azmi
पत्थर के ख़ुदा वहाँ भी पाए
हम चाँद से आज लौट आए
दीवारें तो हर तरफ़ खड़ी हैं
क्या हो गए मेहरबान साए
जंगल की हवाएँ आ रही हैं
काग़ज़ का ये शहर उड़ न जाए
लैला ने नया जनम लिया है
है क़ैस कोई जो दिल लगाए
है आज ज़मीं का ग़ुस्ल-ए-सेह्हत
जिस दिल में हो जितना ख़ून लाए
सहरा सहरा लहू के खे़मे
फिर प्यासे लब-ए-फ़ुरात आए