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GHAZAL

मैं ढूँडता हूँ जिसे वो जहाँ नहीं मिलता

मैं ढूँडता हूँ जिसे वो जहाँ नहीं मिलता

नई ज़मीन नया आसमाँ नहीं मिलता

नई ज़मीन नया आसमाँ भी मिल जाए

नए बशर का कहीं कुछ निशाँ नहीं मिलता

वो तेग़ मिल गई जिस से हुआ है क़त्ल मिरा

किसी के हाथ का उस पर निशाँ नहीं मिलता

वो मेरा गाँव है वो मेरे गाँव के चूल्हे

कि जिन में शोले तो शोले धुआँ नहीं मिलता

जो इक ख़ुदा नहीं मिलता तो इतना मातम क्यूँ

यहाँ तो कोई मिरा हम-ज़बाँ नहीं मिलता

खड़ा हूँ कब से मैं चेहरों के एक जंगल में

तुम्हारे चेहरे का कुछ भी यहाँ नहीं मिलता

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