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GHAZAL

क्या जाने किस की प्यास बुझाने किधर गईं

क्या जाने किस की प्यास बुझाने किधर गईं

इस सर पे झूम के जो घटाएँ गुज़र गईं

दीवाना पूछता है ये लहरों से बार बार

कुछ बस्तियाँ यहाँ थीं बताओ किधर गईं

अब जिस तरफ़ से चाहे गुज़र जाए कारवाँ

वीरानियाँ तो सब मिरे दिल में उतर गईं

पैमाना टूटने का कोई ग़म नहीं मुझे

ग़म है तो ये कि चाँदनी रातें बिखर गईं

पाया भी उन को खो भी दिया चुप भी हो रहे

इक मुख़्तसर सी रात में सदियाँ गुज़र गईं

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क्या जाने किस की प्यास बुझाने किधर गईं — Kaifi Azmi • ShayariPage