जो वो मिरे न रहे मैं भी कब किसी का रहा

जो वो मिरे न रहे मैं भी कब किसी का रहा

बिछड़ के उन से सलीक़ा न ज़िंदगी का रहा

लबों से उड़ गया जुगनू की तरह नाम उस का

सहारा अब मिरे घर में न रौशनी का रहा

गुज़रने को तो हज़ारों ही क़ाफ़िले गुज़रे

ज़मीं पे नक़्श-ए-क़दम बस किसी किसी का रहा