तुम से न मिल के ख़ुश हैं वो दावा किधर गया

तुम से न मिल के ख़ुश हैं वो दावा किधर गया

दो रोज़ में गुलाब सा चेहरा उतर गया


जान-ए-बहार तुम ने वो काँटे चुभोए हैं

मैं हर गुल-ए-शगुफ़्ता को छूने से डर गया


इस दिल के टूटने का मुझे कोई ग़म नहीं

अच्छा हुआ कि पाप कटा दर्द-ए-सर गया


मैं भी समझ रहा हूँ कि तुम तुम नहीं रहे

तुम भी ये सोच लो कि मिरा 'कैफ़' मर गया