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GHAZAL

जब हमें मस्जिद जाना पड़ा है

जब हमें मस्जिद जाना पड़ा है

राह में इक मय-ख़ाना पड़ा है

जाइए अब क्यूँ जानिब-ए-सहरा

शहर तो ख़ुद वीराना पड़ा है

हम न पिएँगे भीक की साक़ी

ले ये तिरा पैमाना पड़ा है

हर्ज न हो तो देखते चलिए

राह में इक दीवाना पड़ा है

ख़त्म हुई सब रात की महफ़िल

एक पर-ए-परवाना पड़ा है

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