हाए लोगों की करम-फ़रमाइयाँ

हाए लोगों की करम-फ़रमाइयाँ

तोहमतें बदनामियाँ रुस्वाइयाँ


ज़िंदगी शायद इसी का नाम है

दूरियाँ मजबूरियाँ तन्हाइयाँ


क्या ज़माने में यूँ ही कटती है रात

करवटें बेताबियाँ अंगड़ाइयाँ


क्या यही होती है शाम-ए-इंतिज़ार

आहटें घबराहटें परछाइयाँ


एक रिंद-ए-मस्त की ठोकर में हैं

शाहियाँ सुल्तानियाँ दाराइयाँ


एक पैकर में सिमट कर रह गईं

ख़ूबियाँ ज़ेबाइयाँ रानाइयाँ


रह गईं इक तिफ़्ल-ए-मकतब के हुज़ूर

हिकमतें आगाहियाँ दानाइयाँ


ज़ख़्म दिल के फिर हरे करने लगीं

बदलियाँ बरखा रुतें पुरवाइयाँ


दीदा-ओ-दानिस्ता उन के सामने

लग़्ज़िशें नाकामियाँ पसपाइयाँ


मेरे दिल की धड़कनों में ढल गईं

चूड़ियाँ मौसीक़ियाँ शहनाइयाँ


उन से मिल कर और भी कुछ बढ़ गईं

उलझनें फ़िक्रें क़यास-आराइयाँ


'कैफ़' पैदा कर समुंदर की तरह

वुसअतें ख़ामोशियाँ गहराइयाँ