सभी अंदाज़-ए-हुस्न प्यारे हैं

सभी अंदाज़-ए-हुस्न प्यारे हैं

हम मगर सादगी के मारे हैं

उस की रातों का इंतिक़ाम न पूछ

जिस ने हँस हँस के दिन गुज़ारे हैं

ऐ सहारों की ज़िंदगी वालो

कितने इंसान बे-सहारे हैं

लाला-ओ-गुल से तुझ को क्या निस्बत

ना-मुकम्मल से इस्तिआ'रे हैं

हम तो अब डूब कर ही उभरेंगे

वो रहें शाद जो किनारे हैं

शब-ए-फ़ुर्क़त भी जगमगा उट्ठी

अश्क-ए-ग़म हैं कि माह-पारे हैं

आतिश-ए-इश्क़ वो जहन्नम है

जिस में फ़िरदौस के नज़ारे हैं

वो हमीं हैं कि जिन के हाथों ने

गेसू-ए-ज़िंदगी सँवारे हैं

हुस्न की बे-नियाज़ियों पे न जा

बे-इशारे भी कुछ इशारे हैं