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NAZM

हम दोनों जो हर्फ़ थे

हम दोनों जो हर्फ़ थे

हम इक रोज़ मिले

इक लफ़्ज़ बना

और हम ने इक मअ'नी पाए

फिर जाने क्या हम पर गुज़री

और अब यूँ है

तुम अब हर्फ़ हो

इक ख़ाने में

में इक हर्फ़ हूँ

इक ख़ाने में

बीच में

कितने लम्हों के ख़ाने ख़ाली हैं

फिर से कोई लफ़्ज़ बने

और हम दोनों इक मअ'नी पाएँ

ऐसा हो सकता है

लेकिन सोचना होगा

इन ख़ाली ख़ानों में हम को भरना क्या है

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