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NAZM

दिल वो सहरा था

दिल वो सहरा था

कि जिस सहरा में

हसरतें

रेत के टीलों की तरह रहती थीं

जब हवादिस की हवा

उन को मिटाने के लिए

चलती थी

यहाँ मिटती थीं

कहीं और उभर आती थीं

शक्ल खोते ही

नई शक्ल में ढल जाती थीं

दिल के सहरा पे मगर अब की बार

सानेहा गुज़रा कुछ ऐसा

कि सुनाए न बने

आँधी वो आई कि सारे टीले

ऐसे बिखरे

कि कहीं और उभर ही न सके

यूँ मिटे हैं

कि कहीं और बनाए न बने

अब कहीं

टीले नहीं

रेत नहीं

रेत का ज़र्रा नहीं

दिल में अब कुछ नहीं

दिल को सहरा भी अगर कहिए

तो कैसे कहिए

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