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NAZM

अजीब क़िस्सा है

अजीब क़िस्सा है

जब ये दुनिया समझ रही थी

तुम अपनी दुनिया में जी रही हो

मैं अपनी दुनिया में जी रहा हूँ

तो हम ने सारी निगाहों से दूर

एक दुनिया बसाई थी

जो कि मेरी भी थी

तुम्हारी भी थी

जहाँ फ़ज़ाओं में

दोनों के ख़्वाब जागते थे

जहाँ हवाओं में

दोनों की सरगोशियाँ घुली थीं

जहाँ के फूलों में

दोनों की आरज़ू के सब रंग

खिल रहे थे

जहाँ पे दोनों की जुरअतों के

हज़ार चश्मे उबल रहे थे

न वसवसे थे न रंज-ओ-ग़म थे

सुकून का गहरा इक समुंदर था

और हम थे

अजीब क़िस्सा है

सारी दुनिया ने

जब ये जाना

कि हम ने सारी निगाहों से दूर

एक दुनिया बसाई है तो

हर एक अबरू ने जैसे हम पर कमान तानी

तमाम पेशानियों पे उभरीं

ग़म और ग़ुस्से की गहरी शिकनें

किसी के लहजे से तल्ख़ी छलकी

किसी की बातों में तुरशी आई

किसी ने चाहा

कि कोई दीवार ही उठा दे

किसी ने चाहा

हमारी दुनिया ही वो मिटा दे

मगर ज़माने को हारना था

ज़माना हारा

ये सारी दुनिया को मानना ही पड़ा

हमारे ख़याल की एक सी ज़मीं है

हमारे ख़्वाबों का एक जैसा ही आसमाँ है

मगर पुरानी ये दास्ताँ है

कि हम पे दुनिया

अब एक अर्से से मेहरबाँ है

अजीब क़िस्सा है

जब कि दुनिया ने

कब का तस्लीम कर लिया है

हम एक दुनिया के रहने वाले हैं

सच तो ये है

तुम अपनी दुनिया में जी रही हो

मैं अपनी दुनिया में जी रहा हूँ!

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