Shayari Page
NAZM

एक पत्थर की अधूरी मूरत

एक पत्थर की अधूरी मूरत

चंद ताँबे के पुराने सिक्के

काली चाँदी के अजब से ज़ेवर

और कई कांसे के टूटे बर्तन

एक सहरा मिले

ज़ेर-ए-ज़मीं

लोग कहते हैं कि सदियों पहले

आज सहरा है जहाँ

वहीं इक शहर हुआ करता था

और मुझ को ये ख़याल आता है

किसी तक़रीब

किसी महफ़िल में

सामना तुझ से मिरा आज भी हो जाता है

एक लम्हे को

बस इक पल के लिए

जिस्म की आँच

उचटती सी नज़र

सुर्ख़ बिंदिया की दमक

सरसराहट तिरी मल्बूस की

बालों की महक

बे-ख़याली में कभी

लम्स का नन्हा सा फूल

और फिर दूर तक वही सहरा

वही सहरा कि जहाँ

कभी इक शहर हुआ करता था

Comments

Loading comments…