Shayari Page
GHAZAL

किस लिए कीजे बज़्म-आराई

किस लिए कीजे बज़्म-आराई

पुर-सुकूँ हो गई है तन्हाई

फिर ख़मोशी ने साज़ छेड़ा है

फिर ख़यालात ने ली अँगड़ाई

यूँ सुकूँ-आश्ना हुए लम्हे

बूँद में जैसे आए गहराई

इक से इक वाक़िआ' हुआ लेकिन

न गई तेरे ग़म की यकताई

कोई शिकवा न ग़म न कोई याद

बैठे बैठे बस आँख भर आई

ढलकी शानों से हर यक़ीं की क़बा

ज़िंदगी ले रही है अँगड़ाई

Comments

Loading comments…
किस लिए कीजे बज़्म-आराई — Javed Akhtar • ShayariPage