GHAZAL•
ख़्वाब के गाँव में पले हैं हम
By Javed Akhtar
ख़्वाब के गाँव में पले हैं हम
पानी छलनी में ले चले हैं हम
छाछ फूँकें कि अपने बचपन में
दूध से किस तरह जले हैं हम
ख़ुद हैं अपने सफ़र की दुश्वारी
अपने पैरों के आबले हैं हम
तू तो मत कह हमें बुरा दुनिया
तू ने ढाला है और ढले हैं हम
क्यूँ हैं कब तक हैं किस की ख़ातिर हैं
बड़े संजीदा मसअले हैं हम