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GHAZAL

हमारे दिल में अब तल्ख़ी नहीं है

हमारे दिल में अब तल्ख़ी नहीं है

मगर वो बात पहले सी नहीं है

मुझे मायूस भी करती नहीं है

यही आदत तिरी अच्छी नहीं है

बहुत से फ़ाएदे हैं मस्लहत में

मगर दिल की तो ये मर्ज़ी नहीं है

हर इक की दास्ताँ सुनते हैं जैसे

कभी हम ने मोहब्बत की नहीं है

है इक दरवाज़े बिन दीवार-ए-दुनिया

मफ़र ग़म से यहाँ कोई नहीं है

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