ब-ज़ाहिर क्या है जो हासिल नहीं है

ब-ज़ाहिर क्या है जो हासिल नहीं है

मगर ये तो मिरी मंज़िल नहीं है


ये तूदा रेत का है बीच दरिया

ये बह जाएगा ये साहिल नहीं है


बहुत आसान है पहचान उस की

अगर दुखता नहीं तो दिल नहीं है


मुसाफ़िर वो अजब है कारवाँ में

कि जो हमराह है शामिल नहीं है


बस इक मक़्तूल ही मक़्तूल कब है

बस इक क़ातिल ही तो क़ातिल नहीं है


कभी तो रात को तुम रात कह दो

ये काम इतना भी अब मुश्किल नहीं है