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जो रानाई निगाहों के लिए सामान-ए-जल्वा है

जो रानाई निगाहों के लिए सामान-ए-जल्वा है

लिबास-ए-मुफ़्लिसी में कितनी बे-क़ीमत नज़र आती

यहाँ तो जाज़बिय्यत भी है दौलत ही की पर्वर्दा

ये लड़की फ़ाक़ा-कश होती तो बद-सूरत नज़र आती

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जो रानाई निगाहों के लिए सामान-ए-जल्वा है — Jaun Elia • ShayariPage