ये ग़म क्या दिल की 'आदत है नहीं तो

ये ग़म क्या दिल की 'आदत है नहीं तो

किसी से कुछ शिकायत है नहीं तो


है वो इक ख़्वाब-ए-बे-ताबीर उस को

भुला देने की नीयत है नहीं तो


किसी के बिन किसी की याद के बिन

जिए जाने की हिम्मत है नहीं तो


किसी सूरत भी दिल लगता नहीं हाँ

तो कुछ दिन से ये हालत है नहीं तो


तेरे इस हाल पर है सब को हैरत

तुझे भी इस पे हैरत है नहीं तो


हम-आहंगी नहीं दुनिया से तेरी

तुझे इस पर नदामत है नहीं तो


हुआ जो कुछ यही मक़्सूम था क्या

यही सारी हिकायत है नहीं तो


अज़िय्यत-नाक उम्मीदों से तुझको

अमाँ पाने की हसरत है नहीं तो


तू रहता है ख़याल-ओ-ख़्वाब में गुम

तो इसकी वज्ह फ़ुर्सत है नहीं तो


सबब जो इस जुदाई का बना है

वो मुझसे ख़ूबसूरत है नहीं तो