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GHAZAL

तू भी चुप है मैं भी चुप हूं ये कैसी तन्हाई है

तू भी चुप है मैं भी चुप हूं ये कैसी तन्हाई है

तेरे साथ तिरी याद आई क्या तू सच-मुच आई है

शायद वो दिन पहला दिन था पलकें बोझल होने का

मुझ को देखते ही जब उस की अंगड़ाई शर्माई है

उस दिन पहली बार हुआ था मुझ को रिफ़ाक़त का एहसास

जब उस के मल्बूस की ख़ुश्बू घर पहुंचाने आई है

हम को और तो कुछ नहीं सूझा अलबत्ता उस के दिल में

सोज़-ए-रक़ाबत पैदा कर के उस की नींद उड़ाई है

हम दोनों मिल कर भी दिलों की तन्हाई में भटकेंगे

पागल कुछ तो सोच ये तू ने कैसी शक्ल बनाई है

इशक़-ए-पेचांकी संदल पर जाने किस दिन बेल चढ़े

क्यारी में पानी ठहरा है दीवारों पर काई है

हुस्न के जाने कितने चेहरे हुस्न के जाने कितने नाम

इश्क़ का पेशा हुस्न-परस्ती इश्क़ बड़ा हरजाई है

आज बहुत दिन बाद मैं अपने कमरे तक आ निकला था

जूंही दरवाज़ा खोला है उस की ख़ुश्बू आई हैॉ

एक तो इतना हब्स है फिर मैं सांसें रोके बैठा हूं

वीरानी ने झाड़ू दे के घर में धूल उड़ाई है

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तू भी चुप है मैं भी चुप हूं ये कैसी तन्हाई है — Jaun Elia • ShayariPage