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GHAZAL

अभी इक शोर सा उठा है कहीं

अभी इक शोर सा उठा है कहीं

कोई ख़ामोश हो गया है कहीं

है कुछ ऐसा कि जैसे ये सब कुछ

इस से पहले भी हो चुका है कहीं

तुझ को क्या हो गया कि चीज़ों को

कहीं रखता है ढूँढता है कहीं

जो यहाँ से कहीं न जाता था

वो यहाँ से चला गया है कहीं

आज शमशान की सी बू है यहाँ

क्या कोई जिस्म जल रहा है कहीं

हम किसी के नहीं जहाँ के सिवा

ऐसी वो ख़ास बात क्या है कहीं

तू मुझे ढूँड मैं तुझे ढूँडूँ

कोई हम में से रह गया है कहीं

कितनी वहशत है दरमियान-ए-हुजूम

जिस को देखो गया हुआ है कहीं

मैं तो अब शहर में कहीं भी नहीं

क्या मिरा नाम भी लिखा है कहीं

इसी कमरे से कोई हो के विदाअ'

इसी कमरे में छुप गया है कहीं

मिल के हर शख़्स से हुआ महसूस

मुझ से ये शख़्स मिल चुका है कहीं

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अभी इक शोर सा उठा है कहीं — Jaun Elia • ShayariPage