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GHAZAL

उसने दो चार कर दिया मुझको

उसने दो चार कर दिया मुझको

ज़ेहनी बीमार कर दिया मुझको

क्यों नहीं दस्तरस में तू मेरे

क्यों तलबगार कर दिया मुझको

कभी पत्थर कभी ख़ुदा उसने

चाहा जो यार कर दिया मुझको

उससे कोई सवाल मत करना

उसने इंकार कर दिया मुझको

एक इंसान ही तो माँगा था

उसको भी मार कर दिया मुझको

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