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चंद उम्मीदें निचोड़ी थीं तो आहें टपकीं

चंद उम्मीदें निचोड़ी थीं तो आहें टपकीं

दिल को पिघलाएँ तो हो सकता है साँसें निकलें

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चंद उम्मीदें निचोड़ी थीं तो आहें टपकीं — Gulzar • ShayariPage