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ये न पूछ कितना जिया हूँ मैं ये न पूछ कैसे जिया हूँ मैं

ये न पूछ कितना जिया हूँ मैं ये न पूछ कैसे जिया हूँ मैं

कि अबद की आँख भी लग गई मेरे ग़म की शाम-ए-दराज़ में

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