दरबार-ए-वतन में जब इक दिन सब जाने वाले जाएँगे

दरबार-ए-वतन में जब इक दिन सब जाने वाले जाएँगे

कुछ अपनी सज़ा को पहुँचेंगे, कुछ अपनी जज़ा ले जाएँगे


ऐ ख़ाक-नशीनो उठ बैठो वो वक़्त क़रीब आ पहुँचा है

जब तख़्त गिराए जाएँगे जब ताज उछाले जाएँगे


अब टूट गिरेंगी ज़ंजीरें अब ज़िंदानों की ख़ैर नहीं

जो दरिया झूम के उट्ठे हैं तिनकों से न टाले जाएँगे


कटते भी चलो, बढ़ते भी चलो, बाज़ू भी बहुत हैं सर भी बहुत

चलते भी चलो कि अब डेरे मंज़िल ही पे डाले जाएँगे


ऐ ज़ुल्म के मातो लब खोलो चुप रहने वालो चुप कब तक

कुछ हश्र तो उन से उट्ठेगा कुछ दूर तो नाले जाएँगे